"रुषति - गच्छति संसारपारम् इति । " यह ऋषि कि व्यख्या हे . ऋषि कि आंखो के सामने सन्सार के पारलौकिक कल्याण का स्पष्ट दर्शन होता है . ऋषि इन्सान का सच्चा अप्तजन हे
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